Friday 5 April 2013

माँ! याद तो आता नहीं

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माँ!
याद तो आता नहीं
तुम्हारा
गोदी में वो मुझे झुलाना
दूध का अमृतरस चखाना
झुनझुने से मेरा दिल बहलाना
लोरी का वो गुनगुनाना
माथे को प्यार से चूमना
गुदगुदी से हँस हँस हँसाना
उँगली पकड़ चलना सिखाना
पर
याद है, माँ मुझे
हाथ में उँगली थामें लिखवाना
खून पसीने से मेरे जीवन को सींचना
मुश्किलों में हौसले का बँधाना
प्यार में आँसुओं का छलकना
गम में रोऊँ तो सहलाना
आने चाहे तुफ़ानों को रोक लेना
अंधेरे में रोशनी का दिखलाना
पास ना रहूँ, तो याद में रोना
और फिर वो पल
जब-
माँ बेटी का रिश्ता बना दोस्ताना
माँ के इस प्यार की बेल का
चढ़ते ही जाना
इंद्रधनुषी रंग में जीवन को रंग देना
तुम्हारी हँसी में दुनिया पा जाना
जीवन की है यह ज्योति
जलती रहे निरंतर
आशीश रहे सदा माँ का
असीम है माँ का प्यार!
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Free Education in india

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Tips To Handle Last-minute Exam Stress

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 The clock is ticking for students who are all set to take the ISC Board examination starting from February 13. With just a week left, stress levels are likely to be high. The number of sleeping hours must have gone down and students wouldn't let go of their books. Although before the exam, every student experiences this sense of fear, this is not the right approach for preparation. That is why at this point of time I only concentrated on revisions without letting the exam pressure build up.
One should understand that it is not the 'quantitative' effort , but the quality that matters. The emphasis should be on learning to strike a balance between subjects. Practical subjects like accounts and mathematics need continuous practice and theoretical subjects like commerce require a thorough understanding of the concepts.
I never attended any coaching classes. The guidance that I received was from my school teachers. Personally, I believe that 80% of one's success depends on a student's effort, 10% on the strategies students use to tackle exams and the remaining 10% on guidance, either through schools or coaching institutes.
When I was preparing for the exams last year, in the afternoon , I made sure to sleep for half-an-hour to one hour. This kept my energy level high.
While studying, I used to take a 10-minute break after every two hours. During this time, I always interacted with people around me. This helped me concentrate better whenever I got back to studying.
All that is required to crack the exams is sincerity, determination , time-management and self-confidence . My advice to all students appearing for the ISC exams is to remember not to make half-hearted attempts and that there are no shortcuts to success.
Article Source: http://timesofindia.indiatimes.com/home/education/board-exams/Success-mantra-and-tips-to-handle-last-minute-exam-stress/articleshow/11775208.cms
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CBSE Science Practice Paper 2013 Set 1

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CBSE Science Practice Paper 2013 Set 1, given here.

1. Name the part of the eye

a. That controls the amount of light entering into the eye.

b. That has real, inverted image of the object formed on it.
2. Draw the structure of pentanal (C4H9CHO)
3. Which of the following belong to the first tropical level? Grasshopper, Rose Plant, Neem plant, Cockroach, vulture.
4. How is depletion of ozone layer in the atmosphere responsible for causing skin cancer?
5. A person can read the number plate of a distant bus clearly but he finds difficulty in reading a book. What type of defect of vision he is suffering from? Name the type of lens he needs to correct this defect. Write the cause of that defect.
6. What is meant by Refractive index? If the speed of light in a medium is 2/3rd of the speed of light in vacuum, find the refractive index of that medium.
7. Explain, why sun appears white when it is over head at noon?
8. Why do we need to use coal and petroleum judiciously?
9. State modern periodic law. Why are isotopes of elements having different atomic masses placed at the same position in the periodic table?
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To get more practice set Free , Ask or, Call : Bivha International School Helpline – +91 8986 054337
Bivha International School ,, Only school in supaul having permanent affiliation with various board (such as : CBSE,Bihar Board, ICSE,I.sc).
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नर्सिंग -Nursing ANM & DNM

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Nurshing Course , para medical education

परिचय

नर्सिंग (परिचर्या) के बारे में तो कुछ कहने की ही ज़रुरत नहीं है. हम सभी जानते हैं कि यह कितना श्रेष्ठ व पवित्र कार्य है. हालांकि यह युगों-युगों से चलता आ रहा है परन्तु इसे नर्सिंग प्रोफेशन के रूप में ख्याति महान अंग्रेज़ नर्स फ्लोरेंस नाइटिंगेल के कार्यों से मिली. इन्हीं दया की देवी को आधुनिक नर्सिंग प्रोफेशन का जनक माना जाता है.
सभी प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक रोगियों की देखभाल करने को ही नर्सिंग (परिचर्या) कहते हैं. नर्स को मरीजों की लगातार देखभाल करनी होती है तथा डॉक्टर द्वारा दी गयी दवाओं को बताये गए समयानुसार देती हैं. ये मेडिकल डॉक्टरों व विशेषज्ञों की ऑपरेशन थियेटर तथा प्रयोगशाला में उपकरण इत्यादि संयोजित करने में सहायता भी करती हैं. परिचारिकायें उन रोगियों की भी सहायता करती हैं जो किसी कारणवश सामान्य ज़िंदगी नहीं जी सकते हैं तथा ये रोगियों को किसी लम्बी बीमारी की स्थिति में उनके पुनः सामान्य जीवन की तरफ लौटने में मदद करती हैं. इन सामान्य कार्यों के अलावा परिचारिकाएं निम्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता भी हासिल कर सकती हैं: प्रसव, ह्रदय रोगों में देखभाल, इंटेंसिव केयर, विकलांग तथा बच्चों की देखभाल इत्यादि.
नर्स केवल बीमार लोगों की देखभाल करने के बारे में ही नहीं है. नर्सों के लिए अन्य उपलब्ध अवसर भी हैं: शिक्षण, प्रशासन अनुसंधान से जुड़े जॉब. इस क्षेत्र का सबसे रोचक तथ्य है कि इसमें ज़्यादातर महिलाएं ही होती हैं हालांकि अब पुरुषों ने भी इस प्रोफेशन में रूचि दिखाना शुरू कर दिया है.

चरणबद्ध प्रक्रिया

नर्स (परिचर्या) बनने के इच्छुक लोग विभिन्न स्तरों से इस की शुरूआत कर सकते हैं. आप सहायक नर्स मिडवाइफ/हेल्थ वर्कर (एएनएम) कोर्स से शुरू कर सकते हैं. इस डिप्लोमा कोर्स की अवधि डेढ़ वर्ष है तथा न्यूनतम योग्यता है- दसवीं पास.  इसके अलावा आप जनरल नर्स मिडवाइफरी (जीएनएम) कोर्स भी कर सकते हैं जो की साढ़े तीन वर्षो का होता है तथा इसके लिए न्यूनतम योग्यता है – 40 प्रतिशत अंकों के साथ भौतिक, रासायनिक एवं जीव विज्ञान में बारहवीं उत्तीर्ण.
एएनएम व जीएनएम के अलावा देश भर में फैले हुए विभिन्न नर्सिंग स्कूलों व कॉलेजों से नर्सिंग में स्नातक भी किया जा सकता है. इसके लिए न्यूनतम योग्यता है- 45 प्रतिशत अंकों के साथ अंग्रेज़ी, भौतिक, रासायनिक एवं जीव विज्ञान में बारहवीं उत्तीर्ण तथा आयु कम से कम 17 वर्ष. बीएससी नर्सिंग (बेसिक के पश्चात) पाठ्यक्रम के लिए आप दो वर्ष के रेगुलर कोर्स या त्रिवर्षीय दूरस्थ शिक्षा वाले पाठ्यक्रम में से किसी एक को चुन सकते हैं. रेगुलर कोर्स के लिए जहां न्यूनतम योग्यता है- 10+2+जीएनएम, वहीं दूरस्थ शिक्षा से यह कोर्स करने के लिए न्यूनतम योग्यता है- 10+2+जीएनएम+ दो वर्ष का अनुभव. यह पोस्ट बेसिक बीएससी नर्सिंग कोर्स ही आधुनिक माना जाता है.
भारतीय रक्षा सेवाओं द्वारा संचालित बीएससी (नर्सिंग) कोर्स के लिए 17 से 24 वर्ष की महिलाओं का चयन किया जाता है. यहाँ भी न्यूनतम योग्यता भौतिक, रसायन, जीव विज्ञान तथा अंग्रेज़ी विषयों में 45 प्रतिशत अंकों के साथ 12वीं है. प्रार्थी को एक लिखित परीक्षा भी पास करनी होती है. उसे शारीरिक रूप से भी फिट रहना चाहिए. चयनित लोगों को रक्षा सेवाओं के लिए पांच वर्ष का अनुबंध करना होता है.
किसी भी आयुर्विज्ञान संस्थान में नौकरी प्राप्त करने के लिए जीएनएम अथवा बीएससी ही पर्याप्त होता है.  प्रत्येक राज्य में नर्सों को रजिस्टर करने वाली अलग-अलग संगठन होते हैं. शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात आप अपने राज्य की नर्सिंग काउंसिल में अपना पंजीकरण करा सकते है. पंजीयन आपको जॉब प्राप्त करने में सहायता करता है.
नर्सिंग के बेसिक कोर्स के अलावा आप पोस्ट-बेसिक स्पेशियलिटी (एक-वर्षीय डिप्लोमा) कोर्स करके निम्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता भी हासिल कर सकते हैं:
१. कार्डिएक थोरेकिक नर्सिंग
२. क्रिटिकल-केयर नर्सिंग
३. इमरजेंसी एवं डिजास्टर नर्सिंग
४. नए-जन्मे बच्चे की परिचर्या (नियो-नेटल नर्सिंग)
५. मस्तिष्क-संबंधी रोगों में परिचर्या (न्यूरो नर्सिंग)
६. नर्सिंग शिक्षा एवं प्रशासन
७. कर्क-रोग संबंधी नर्सिंग (ऑनकोलोजी नर्सिंग)
८. ऑपरेशन-रूम नर्सिंग
९. विकलांग चिकित्सा नर्सिंग
१०. मिड वाइफरी प्रैक्टिशनर
११. मनोरोग परिचर्या (साइकैट्रिक नर्सिंग)
जो छात्र उच्चतम शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं वह एमएससी, एमफिल तथा पीएचडी भी कर सकते हैं.

पदार्पण

यदि आप नर्सिंग को ही अपना प्रोफेशन बनाना चाहते हैं तो १०वीं के उपरान्त ही एएनएम कोर्स के लिए आवेदन करना बेहतर रहेगा अन्यथा आप स्कूलिंग करने के उपरान्त जीएनएम या बीएससी कोर्स कर सकते हैं.

क्या यह मेरे लिए सही करियर है?

मानवता की सेवा के लिए नर्सिंग की जॉब बहुत ही उद्देश्यपूर्ण है. यदि आप लगनशील हैं, आपमें दृढ़ इच्छाशक्ति है तथा रोगियों और दुखियों की सेवा करने का जूनून है और तनावपूर्ण परिस्थितियों में लम्बे समय तक काम करने की क्षमता है तो यह आपके लिए सही करियर है. नयी तकनीकों को आत्मसात करने तथा विभिन्न परिस्थितियों को संभालने की क्षमता रखना इस व्यवसाय की दो प्रमुख मांगें हैं.

खर्चा कितना आएगा?

नर्सिंग की पढ़ाई का खर्च संस्थान पर निर्भर करता है. सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त कॉलेज, निजी संस्थानों की अपेक्षा कम दर पर शिक्षा मुहैय्या कराते हैं. निजी संस्थान बीएससी नर्सिंग कोर्स के लिए 40,000 से 1,80,000 तक वार्षिक फीस वसूलते हैं. जीएनएम कोर्स के लिए यहाँ फीस होती है- 45,000 से 1,40,000 के बीच.

छात्रवृत्ति

कई संस्थान योग्य छात्रों को मेरिट के आधार पर छात्रवृत्ति प्रदान करते हैं. छात्रवृत्ति एवं उसकी अवधि भिन्न संस्थानों में भिन्न होती हैं. नर्सिंग के लिए बिभा इंटरनेशनल स्कूल , सालाना 22,000 की छात्रवृति प्रदान करती हैं

रोज़गार के अवसर

नर्स कभी भी बेरोजगार नहीं रहतीं हैं. इन्हें आसानी से सरकारी अथवा निजी अस्पतालों, नर्सिंग होम, अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम, आरोग्य निवास, विभिन्न अन्य उद्योगों एवं रक्षा सेवाओं में नौकरी मिल जाती है. इनके लिए इन्डियन रेड-क्रॉस सोसाइटी, इन्डियन नर्सिंग काउंसिल, स्टेट नर्सिंग काउन्सिल्स तथा अन्य नर्सिंग संस्थानों में भी कई अवसर हैं. यहाँ तक कि एएनएम कोर्स के बाद ही इन्हें सारे देश में फैले हुए प्राथमिक चिकित्सा केन्द्रों पर प्राथमिक स्वास्थय सेवक के रूप में नौकरी मिल जाती है.
नर्सें मेडिकल कॉलेज व नर्सिंग स्कूलों में शिक्षण कार्य के अलावा प्रशासनिक कार्य भी कर सकती हैं.  उद्यमी लोग अपना खुद का नर्सिंग ब्यूरो शुरू कर सकते हैं तथा अपनी शर्तों पर काम कर सकते हैं.
देश में ही उपलब्ध अपार अवसरों के अलावा  नर्सें बेहतर अवसरों की तलाश में विदेश भी जा सकती हैं जिसके लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय नर्सिंग प्रमाणपत्र प्राप्त करना होता है तथा सम्बंधित देश में प्रवास की कुछ शर्तों का पालन करना होता है.

वेतनमान

इस क्षेत्र में शुरूआती तौर पर आपको 7 से 17 हज़ार रूपये तक मासिक वेतन मिल सकता है.  मिड-लेवल पदों पर नर्सें 18 से 37 हज़ार रूपये प्राप्त कर लेती हैं.  अधिक अनुभवी नर्सों को 48 से 72 हज़ार रूपये तक भी मासिक वेतन के रूप में मिल सकते हैं.  यूएस, कनाडा,  इंग्लैण्ड व मध्य-पूर्व के देशों में रोज़गार पाने वाली नर्सों को इससे भी अधिक वेतन मिलता है.

मांग एवं आपूर्ति

तेज़ी से बढ़ती जनसंख्यां के साथ बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती मांग के कारण देश में नर्सों की कभी न समाप्त होने वाली मांग बन चुकी है. हालांकि इस बढ़ती मांग की तुलना में आपूर्ति बहुत कम है.
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, सारे देश में नर्सिंग काउंसिल में पंजीकृत नर्सों की संख्या 10.3 लाख है परन्तु वास्तव में इनमें से केवल 4 लाख नर्स ही कार्यरत हैं.  इनमें से ज़्यादातर नर्स या तो सेवानिवृत्त हो चुकी हैं या शादी कर चुकी हैं. इनमें से कुछ नर्सें विदेश चली गयी हैं. इसलिए इस क्षेत्र में मांग एवं आपूर्ति में बहुत बड़ा अंतर है.

मार्केट वॉच

स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता की वजह से इस क्षेत्र में रोज़गार के अवसर पहले से कहीं ज्यादा हैं. आज ज्यादा से ज्यादा अस्पताल एवं नर्सिंग होम स्थापित हो रहे हैं. सरकार भी अपनी तरफ से नर्सिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है. सरकार ने अभी हाल ही में 130 एएनएम तथा इतने ही जीएनएम स्कूल स्थापित करने की योजना बनायी है. इसके अलावा राज्यों की नर्सिंग काउंसिल व नर्सिंग सेल को मजबूत बनाने की भी योजना है. इन योजनाओं में देश भर में नए नर्सिंग कॉलेज स्थापित करना भी शामिल है.
सरकार ने तो अस्पतालों को बिना स्नातक कोर्स संचालित किये एमएससी  कोर्स  चलाने की भी अनुमति दे दी है. नर्सिंग कॉलेजों में दाखिले की न्यूनतम योग्यताओं में भी ढील दी गयी है जिससे कि अब विवाहित महिलाएं भी इसमें प्रवेश पा सकें.

अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन

विदेशों में उच्च शिक्षित नर्सों की बहुत मांग है. भारत कई देशों में नर्सों की आपूर्ति करने वाला सबसे बड़ा देश बन चुका है.  अच्छे पैसे व बेहतर रहन-सहन की चाहत में अनुभवी भारतीय नर्सें विदेशों का रुख करने लगी हैं. देश में नर्सों की संख्या में कमी की एक बड़ी वजह यह भी है

सकारात्मक/नकारात्मक पहलू

सकारात्मक
1. यह एक सुरक्षित प्रोफेशन है.
2. इस क्षेत्र में अवसरों की कमी नहीं है चाहे वह देश में हों या विदेश में.
3. आप रोगियों को ठीक होते हुए देखकर संतुष्ट हो सकतीं हैं.
नकारात्मक
4. साधारणतः नर्सें शिफ्ट में काम करती हैं और रात की ड्यूटी एक बहुत साधारण बात है.
5. तनावपूर्ण परिस्थितियाँ मन तथा स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती हैं.
6. दया की इन देवियों द्वारा किये गए कार्य अक्सर गुमनामी के अंधेरों में खो जाते हैं.
7. विवाहित और पारिवारिक जीवन के बाद ये कार्य बहुत मुश्किल हो जाता है.

भूमिका एवं पदनाम

नर्स का पहला काम है- ज़रूरतमंद लोगों को चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराना तथा उनकी देखभाल करना.  फिर भी उनके कामों को निम्न भागों में विभक्त किया जा सकता है:
जनरल नर्स: इस श्रेणी की नर्सें अस्पताल,  नर्सिंग होम व अन्य मिकल संस्थानों में कार्य करती हैं.  इनका कार्य मरीजों की देखभाल करना, डॉक्टर की सहायता करना एवं प्रशासनिक कार्यों का निष्पादन करना होता है.
मिड-वाइफ: ये नर्सें गर्भवती महिलाओं की देखभाल तथा प्रसव के दौरान डॉक्टरों की सहायता करती हैं.
स्वास्थ्य-सेविका: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाना इनका कार्य होता है.
इनके अलावा विशेषज्ञता जैसे विकलांग चिकित्सा नर्सिंग, कर्क-रोग संबंधी नर्सिंग (ऑनकोलोजी नर्सिंग), कार्डिओ थोरेकिक नर्सिंग, मनोरोग परिचर्या (साइकैट्रिक नर्सिंग) और क्रिटिकल-केयर नर्सिंग इत्यादि के आधार पर भी इन्हें वर्गीकृत किया जा सकता है.

अग्रणी कम्पनियों की सूची

1.बिभा चाइल्ड फण्ड
2. इन्डियन नर्सिंग काउंसिल, विभिन्न राज्य-स्तरीय नर्सिंग काउंसिल
3. विभिन्न नर्सिंग स्कूल एवं संगठन
4. सभी प्रकार के अस्पताल एवं नर्सिंग होम्स
5. रक्षा सेवा
6. शिक्षण संस्था तथा उद्योग
7. अनाथाश्रम तथा वृद्धाश्रम जैसे विशेष संसथान
   इन्डियन रेड-क्रॉस सोसाइटी

रोज़गार प्राप्त करने के लिए सुझाव

1. किसी प्रतिष्ठित संस्थान से डिग्री या डिप्लोमा अवश्य करें.
2. किसी क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करना आपके लिए लाभकारी सिद्ध होगा.
3. रोज़गार प्राप्त करने की सबसे महत्वपूर्ण शर्त है की स्वयं को किसी भी राज्य की नर्सिंग काउंसिल में पंजीकृत कराना.
4. चूंकि नर्सों को हमेशा रोगियों तथा अन्य मेडिकल स्टाफ से बात करनी होती है अतः उनकी संवाद क्षमता उच्च स्तर की होनी चाहिए.
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Paramedical education in Bivha Medical College

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School of Paramedical Sciences

The continuous expansion of the health care industry brings with it a growing demand for trained paramedical professionals. In order to cater to this demand to whatever extent possible, Bivha Medical College  has recently entered the field of paramedical education with the introduction of diploma courses in subjects such as Medical Laboratory Technology, Electrocardiogram Technology, Medical Radiographic (x-ray) Technology, Operation Theatre Technology and Biomedical instrumentation.
A Paramedic is a professional who helps the doctors in specialized areas and facilitates for better diagnosis, treatment and therapy. The increase in number of patients, variety of diseases & the demand for immense treatment have paved the way for Paramedical Professionals who are expert technicians or therapists providing better quality to human health care.
Paramedics are the key players in the Health & Medical Sector. Without paramedics, the entire Health Industry is out of gear and is almost non-functionary. If there are no Paramedics, there is neither money nor any profit for doctors, hospitals, private clinics, etc. (In general the entire health sector).
Our courses are approved by Govt. of India HRD (Department of Science and Technology), recognized By AICTE (All India Council for Technical Education) and Affiliated to State Board of Technical Education. We offer regular mode of teaching and supplemented by an intensive and rigorous practical training that equips the students with knowledge of the latest techniques and trends so that on completion they can emerge as fully trained and confident professionals.


Programme fee per Annum
Sl.No    Particulars    1st Year    2nd Year    3rd Year
1    Admission fee    5,000/-        
2    Tuition Fee    22,200/-    15,200/-    22,200/-
3    Clinical Fee    3,000/-    3,000/-    3,000/-
4    Library Fee    1200/-    1200/-    1200/-
5    Development Fee    3000/-    3000/-    3000/-
6    BSA(BIS Student Association)      700/-      700/-      700/-
     


Diploma Level Courses     Degree Level Courses
COURSES OFFERED     1.    Medical Lab Technology,
2.    ECG-EEG Technology,
3.    X Ray / CT Technology,
4.    Operation Theater,
5.    Bio Medical Instrumentation.    Medical Lab Technology,
 

  • Radiology Imaging Services.
  • Medical Instrumentation, 
  • Bio Medical Instrumentation, 
  • Dental Technology, 
  • Operation Theater, 
  • Physiotherapy.

Recognized By     AICTE (All India Council of Technical Education) New Delhi.     L P U 
 

Approved By     Science and Technology & Health Department Govt. of India    I G  N OU
 

Duration of Courses     2 years     3 Years
 

Affiliated to     SMU (Manipal)/KSOU/IGNOU   
 

Medium of Instruction     English/Hindi     English
 

Eligibility     10th     Intermediate / 10+2 (Science) 
 

Selection Procedure     Entrance Exam / BIS Combined Test Direct admission for  BIS Students    Entrance Exam / Direct admission for  BIS Students





Education Loan also available from PNB & Bivha Finance Corporation 
 
 For details Please contact : +91 800-2585971 , 08986054337
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शरीर को करें अंदर से साफ

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मौजूदा जीवन शैली के खान-पान, रहन-सहन और कामकाजी तनाव की वजह से शरीर को कई शारीरिक और मानसिक बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इसकी जड़ में कई किस्म के जहरीले तत्व (टॉक्सिंस) मौजूद रहते हैं, जिनसे निजात पाना जरूरी है। शरीर और मन को नई ऊर्जा देने के लिए जरूरी डिटॉक्सिफिकेशन के कारगर तरीकों पर सुधीर गोरे की रिपोर्ट
नवंबर की दीवाली, दिसंबर में नए साल का जश्न, जनवरी में जन्मदिन और फरवरी में दोस्त की शादी जैसे यादगार मौके का मजा अच्छी दावत के बिना अधूरा है। मौज-मस्ती के ये ऐसे मौके हैं, जब खाने-पाने पर रोक-टोक बेअसर रहती है। इन दावतों में सेहत को चुनौती देने वाले आहार भी शामिल रहते हैं। साथ ही बढ़ते प्रदूषण और तनाव की वजह से हमारे शरीर में कई ऐसे तत्व बनते हैं, जो टॉक्सिंस यानी जहर का काम करते हैं। ये जहरीले पदार्थ हमारे लिवर में जमा हो जाते हैं, तो त्वचा को बेजान कर देते हैं, नींद पूरी नहीं होने देते और हर समय थकान लगती है। इनसे कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में इस धीमे जहर से छुटकारा पाना बेहद जरूरी है, जो दबे पांव शरीर में दाखिल होता है। इस जहर को काटने की प्रक्रिया डिटॉक्सिफिकेशन के जरिए इन सब टॉक्सिंस को शरीर से बाहर निकाला जा सकता है। 
क्या है डिटॉक्सिफिकेशन?
आसान शब्दों में कहा जाए, तो यह शरीर को उन तत्वों से निजात दिलाता, जो हमें नुकसान पहुंचाते हैं। क्लिनिकल न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. इशी खोसला के मुताबिक, ‘शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों से निजात दिलाने के लिए इलाज की अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं डिटॉक्सिफिकेशन या डिटॉक्स। इनमें भरपूर पानी और जूस पीना, सलाद और पाचक पदार्थ खाने के अलावा उपवास रखना, एनीमा के जरिए पेट की सफाई या मलावरोध दूर करने के उपाय शामिल हैं।’ डिटॉक्स शरीर और दिमाग को स्वस्थ और तरोताजा रखने की प्रक्रिया है। इससे मानसिक तनाव और दूसरे विकार दूर भागते हैं और नई ऊर्जा का संचार होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक लगातार थकान, अपच, कब्ज, मोटापा, बार-बार जुकाम और बुखार, तनाव, अक्सर सरदर्द, नींद न आना या जरूरत से ज्यादा सोना, जोड़ों में दर्द, निराशा, अवसाद और सेक्स के प्रति अनिच्छा आदि शरीर में टाक्सिंस बढ़ने के लक्षण हैं। इन हालात में डिटॉक्स जरूरी हो जाता है। लेकिन जानकारों का कहना है कि बॉडी डिटॉक्सिफिकेशन के कई तरीके हैं और कोई भी डिटॉक्स प्रोग्राम शुरू करने से पहले डॉक्टर से सलाह-मशविरा जरूरी है। 
कैसे करें डिटॉक्स?
 शरीर को डिटॉक्स करने के कई तरीके और उत्पाद बाजार में आए और कुछ पर सवाल भी उठे हैं, लेकिन नई रिसर्च के मुताबिक आधुनिक चिकित्सा के साथ ही परंपरागत सेहतमंद आहार भी दवा का काम करता है। डॉ. खोसला के मुताबिक, कुछ दिनों की स्पेशल डिटॉक्स डाइट लेना या उपवास के रूप में अनियमित रूप से भूखे रहना डिटॉक्स का कारगर उपाय नहीं है। हेल्दी डाइट और योग सहित नियमित फिजिकल एक्सरसाइज जरूरी है। डॉ. खोसला के मुताबिक इसके पांच सबसे अच्छे तरीके हैं:
1. खान-पान में सब्जियां, फल, मेवे और बीज (अलसी, सूरजमुखी आदि)
2. तरल पदार्थो का सेवन करें
3. चीनी, प्रोसेस्ड और तली हुई 
चीजें कम खाएं 
4. शराब कम पिएं 
5. सिगरेट से दूरी बनाएं
व्रत रखिए, डिटॉक्स कीजिए
अगर पेट को कुछ आराम मिले तो शरीर की ऊर्जा लौटती है। यही वजह है कि व्रत से डिटॉक्सिफिकेशन की परंपरा रही है। आधुनिक मेडिकल साइंस ने भी इसकी अहमियत को माना है। हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल से जुड़ी न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. रशेल हिंड के मुताबिक, ‘व्रत से आप शरीर को एक अहम बदलाव का संकेत देते हैं। इसके बाद सेहतमंद भोजन आपके शरीर पर तेजी से अच्छा असर डालता है।’ आम लोग संतुलित आहार के साथ उपवास करें तो बेहतर है। उनके मुताबिक शुरुआत में ही पूरी तरह भूखा रहना जरूरी नहीं है। इसके पांच विकल्प हैं: (1) दिन भर सिर्फ फल, सब्जियां, मेवे और सीड्स खाना, (2) दिन में एक बार भोजन करना जिसमें सिर्फ फल और चावल से बनी चीजें शामिल होंे, (3) दिन भर सब्जियों के सूप या जूस पीना, (4) एक बार खिचड़ी या सलाद का सेवन और (5) दिन की शुरुआत में नाश्ते से पहले 16 घंटे भूखे रहना।
आयुर्वेदिक और यूनानी डिटॉक्स
आयुर्वेद हमेशा से डिटॉक्स पर जोर देता रहा है। इसलिए आयुर्वेद और नेचुरोपैथी के कई सेंटर इन दिनों डिटॉक्स पैकेज पेश कर रहे हैं। आयुर्वेदिक डिटॉक्स में डिटॉक्स फुट स्पा और बाथ भी शामिल हैं। केरल की मशहूर पंचकर्म पद्धति भी डिटॉक्स का ही एक रूप है। आयुर्वेदिक डिटॉक्स में विशेष तेलों से मसाज,  स्टीम बाथ, औषधीय तेल को सिर पर गिराकर तनाव कम करना, एनीमा से पेट साफ करवाना, नस्यम के अंतर्गत नाक में दवा डालना और औषधि वाले द्रव से गरारे करना शामिल है। यूनानी चिकित्सा पद्घति के मुताबिक, शरीर को नुकसान देने वाले टॉक्सिंस से बचाना और लिवर को दुरुस्त करना डिटॉक्सिफिकेशन  है। 
नींद बड़ी जरूरी 
शहरी जीवनशैली का तनाव, दफ्तर में लगातार काम का दबाव या देर रात टीवी देखने की आदत की वजह से थकान खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। देर रात की बजाय जल्दी सो जाएं, तो यह शरीर के लिए बेहतर होगा। 7-8 घंटे की नींद शरीर से थकान और दर्द दूर कर देती है। सोते समय कमरे का तापमान संतुलित रहना चाहिए। 
पसीना बहाओ, मसाज कराओ 
पसीने से टॉक्सिंस निकल जाते हैं और शरीर में ऑक्सीजन की ज्यादा खपत होती है। जरूरत और क्षमता के मुताबिक आप जॉगिंग, तेजी से चलना या एरोबिक्स कर सकते हैं। योग करने वाले कपालभाति, योग मुद्रा, पवनमुक्तासन और मेडिटेशन कर सकते हैं। डेस्क जॉब करने वाले या कंप्यूटर पर काम करने वाले लोगों का शरीर लंबे समय तक एक ही मुद्रा में रहता है, ऐसे में मसाज और इसके बाद गरम पानी से नहाना फायदेमंद है। मसाज के लिए तेल का चुनाव अपनी त्वचा और शरीर की प्रकृति के हिसाब से करना चाहिए, तभी सही रहता है। 
सावधानी भी बरतें
जो लोग बीमार हैं उन्हें डॉक्टर की देखरेख में ही डिटॉक्स डाइट या प्रोग्राम अपनाना चाहिए। अगर यह घरेलू नुस्खों पर आधारित हो तो भी इसके साथ चलने-फिरने, रस्सी कूदने, तैरने जैसी वर्जिश की भी सलाह दी जाती है। कई डिटॉक्स प्रोग्राम और प्रोडक्ट चलन में हैं और इन्हें अपनाते वक्त लिवर को कोई नुकसान न हो, इसका खास ध्यान रखें। लिवर डिटॉक्स के लिए शराब, तले पदार्थ, चीनी, रिफाइंड काबरेहाइड्रेट्स, प्रोसेस्ड फूड आदि से परहेज करना चाहिए। ज्यादा पानी पीना और हरी सब्जियां खाना अच्छा है।

<div class="message_box note">किसी की देखरेख में ही डिटॉक्स डाइट या 
प्रोग्राम अपनाना चाहिए </div>
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